Sunday, 16 April 2017

पुरूष उत्पीड़न; एक नजर

देवकिशन राजपुरोहित

समाचार पत्र, टीवी-चैनल या आकाशवाणी पर ज्यौंही बलात्कार शब्द आता है, पाठक या श्रोता किसी महिला या लड़की के साथ जबर्दस्ती भोग का अनुमान लगा कर बाद में समाचार में रूचि लेते हैं। इसकी चर्चाऐं आम हो जाती है। मामला थाने ओर अदालत में जाता है। पूरे पुरूष वर्ग पर फबत्यिा कसी जाती हैं। इतना ही नहीं भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 भी पुरूषों के ही विरोध में है। नारी शोषण, नारी उत्पीड़न आदि अनेक सरकारी ओर गैर सरकारी संस्थऐं कार्य करती हैं, नारी रक्षा के लिए। राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर महिला आयोग बने हैं, जो नारी को संरक्षण देते हैं और पुरूषों को कठघरे में खड़ा करते हैं, किन्तु जब लड़कों के साथ कोई लड़की बलात्कार करती हैं अनेक मनचली लड़कियां, जबरन लड़कों को पकड़ कर उनके साथ बलात्कार करती है, और लड़के अपनी बेईमानी इज्जत से डरकर उसे छिपाते हैं। अगर वे पुलिस में चले जाऐं तो उनका मखौल उड़ाया जाता है। अनेक युवक इसके शिकार हैं। अगर वे विरोध करें तो लड़कियां उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज करा देती हैं। बाकी लड़के ब्लेकमेंलिंग के शिकार होते हैं। लड़कों द्वारा लड़कियों के विरूद्ध बलात्कार के प्रकरण शून्य के बराबर है। आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में 10 लड़कियों ने 7 जून को एक लड़के के साथ बलात्कार किया था और यह प्रकरण चर्चित रहा। कानपुर के विधोनी में भी एक लड़की ने एक लड़के के साथ उसी वर्ष जून में बलात्कार किया था। यह प्रकरण आने के बाद लड़के की ही मर्दानगी पर प्रश्न चिन्ह लगे। परिणाम अन्य लड़के फिर हिम्मत नहीं जुटा पाए। साऊथ दिल्ली बसन्त कुज्ज नॉर्थ में एक होटल में 26 वर्ष की युवती द्वारा 17 वर्षीय लड़के के साथ बलात्कार किया गया ओर उस युवती का पोकसो एक्ट में मामला दर्ज हुआ चैम्बूर में एक 16 वर्षीय लड़के ने अपने खास मित्र की मा पर आरोप लगाया कि वह एक दिन मित्र से मिलने गया तो मा ने कहा कि अन्दर आ जाओ उसका इन्तजार करो। उसके बाद उस मित्र की माने बलात्कार किया। यह क्रम 3 माह तक चला तब उसने अपने पिता को बताया ओर पुलिस की शरण ली। इसी तरह जिम्बाबवे में तीन लड़कियों ने एक लड़के को अपनी कार में लिफ्ट दी ओर उन्होंने उस लड़के के साथ बारी बारी से बलात्कार किया। उतरप्रदेश के सहारनपुर के एक लड़के के साथ एक लड़की ने अपनी दो सहेलियों के सहयोग से बलात्कार किया। तमिलनाडु में तीन लड़कियों ने 25 मई को अपने घर बुला कर एक लड़के से बलात्कार किया 2 दिसम्बर 14 को तो एक लड़के के साथ गैंगरेप भी हुआ। 28 अप्रैल 2008 को सिंगापुर में 13 वर्ष के लड़के के साथ 5 लड़कियों द्वारा गैंगरेप किया गया 12 अक्टूबर 2007 को स्वीडन में एक तेरह वर्षीय लड़के का गैंगरेप चर्चा में रहा। एसे सैकड़ो उदाहरण भी हैं कि लड़कियों ने लड़को के साथ बलात्कार किया ओर बाद में पुलिस के हवाले कर दिया। अनेक लड़कियों द्वारा लड़को को फंसाकर ब्लेक मेल भी किया जाता हैं। 

भारत में आदिकाल से नारी पूज्या रही है जहां कहा जाता है‘‘ यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता‘‘। नारी सदैव अर्द्धागिनी है अर्थात् वह पुरूष के समान रही है। आज आधुनिक लोग स्त्री को समानता के अधिकार की बात करते है वह तो पहले से ही है, नया क्या है? पुरूष कमाता है। पत्नी घर गृहस्थी संभालती है। हसते खेलते दाम्पत्य में अचानक कुछ लोग गृहस्थी में जहर घोलने का काम करते हैं। हमारी परम्पराओं और मान्यता में दखल न दिया जाय तो ही उचित है। हमारी नारियां चाहे पर्दे में रहे। बुर्के में रहे या न रहें। क्यों ले जाया जा रहा है समानता के नाम पर।

आजकल बड़े शहरों की अनेक लड़कियां कालेज पहुंचते पहुंचते बाय फ्रेण्ड बना लेती हैं। शादी के बाद भी वे उन्हें छोड़ना नहीं चाहती। ससुराल वालों और पति का विरोध बाय फ्रेण्ड से मिलने पर हो तो अगले ही दिन पुलिस आपके द्वार यह सब पात्र उदाहरण है।

पति द्वारा पत्नी का उत्पीडन, शोषण दहेज की मांग, जान से खतरा, पति के परिवार से परेशानी जैसी शिकायतों के कारण अनेक पुरूष जेलों में सड़ते हैं। पति-पत्नी के तलाक के पूरे देश में लाखों प्रकरण बन चुके हैं। मामूली बात पर पति द्वारा पत्नी को उलाहना देना पति और उसके परिवार के लिए गले की हड्डी बन जाता है मगर उस बेचारे की कौन सुने? उसका गुनाह मात्र इतना है कि वह पति और पुरूष भी।

कई पत्नियां पति का मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, दैहिक शोषण करती हैं मगर वह मन मारकर सहता रहता है। अनेक पत्नियां पति व ससुराल पक्ष को आत्मदाह या अन्य किसी प्रकार से आत्महत्या की धमकी दे कर परिवार को आफत में डाल देती हैं।

अनेक पत्निया तो जब तक पति के साथ गाली गलौज न करे या उसकी पिटाई न करे तब तक उन्हें भोजन नहीं पचता। इस पर यूएन द्वारा कराए गए एक सर्वे मंे पतियों को पत्नियों द्वारा पिटाई में विष्व में प्रथम इजिफ्ट है और दूसरे स्थान पर यूके को माना गया है जबकि भारत तीसरे स्थान पर है पतियों की पिटाई के लिए बेलन, बेल्ट, जूते, झाडू, किचन के अन्य उपकरण काम में लिए जात है।  बात-बात पर कई पत्नियां तो पीहर जाने, ओर मामला दर्ज कराने की धमकियां देती हैं। सहन करो, मन की पीड़ा मन में रखो, अन्यथा चार दीवारी से बाहर बात गई और हो गई बदनामी। अगर कभी पौरूष जग गया तो भारतीय दण्ड संहिता की अनेक धाराओं का सामना करो।

तलाक, नारी उत्पीडन ओर दहेज के अधिकतर प्रकरणों में पत्नी का स्वैच्छारिक होना चरित्रहीन होना, घर के काम न करना, ससुराल पक्ष को कानून की आड़ में ब्लेकमेल करना मुख्य होता है। एसे प्रकरणों में लड़की के माता-पिता द्वारा लड़की का सहयोग करना आग में घी का काम करता है। जिस लड़की की शादी धूम धाम से की थी गृहस्थी उजड़ जाती है, ओर वह लड़की परित्यक्ता बन कर किसी के चंगुल में फंसकर अपना भविष्य दांव पर लगा देती है। शादी के बाद एक वर्ष के अन्दर अन्दर सैकड़ों नहीं हजारों प्रकरण दहेज प्रताड़ना के नाम पर तलाक और रूपये मांगने के लम्बित हैं।

        ऐस अनेक प्रकरणों को देखने ओर एकाध प्रकरण में तो मैने स्वयं ने बीच बचाव तक भी किया। कुल मिला कर महिला उत्पीडन से अधिक पुरूष उत्पीड़ित है मगर उसकी कोई भी सुनवाई करने वाला नहीं। न पुलिस, न अदालत, न सरकार और न कोई पुरूष आयोग या अन्य अनेक एसे भी प्रकरण है कि शादी के तुरन्त बाद नवविवाहिता घर के गहने कपड़े लेकर फुर्र हो जाता है और दहेज का मामला दर्ज करवा कर पति पक्ष से मोटी रकम की भी मांग करती है। पति और ससुराल पक्ष जेल में और वह अपने बॉय फ्रेण्ड के घर पर!

अनेक शहरों के पत्नी पीड़ितों ने तो पत्नी पीड़ित संघ बना कर पत्नियों से बचने के लिए सरकार का ध्यान भी आकर्षित किया किन्तु उनकी कौन सुने? राजस्थान के जोधपुर में तो पत्नी पीड़ितों ने बाकायदा जुलूस भी निकाला था ओर त्रामिमाम् चाहिमाम मच गई।

हमारे सभ्य समाज को किसकी नजर लग गई कि पहले संयुक्त परिवारों का विखण्डन हुआ। अब परिवार टूट रहे हैं और लड़को की भी इज्जत दांव पर लग रही है। इसके बचाव का एक ही सुगम रास्ता है और वह है संयुक्त परिवार प्रणाली जिसमें मान मर्यादा अनुशासन और चरित्र की रक्षा हो सकती है। इस विषय पर समाज और न्यायपालिका और सरकार को ध्यान देना होगा। अन्यथा पुरूष उत्पीडन कभी विषफोटक हो कर सड़क पर आ सकता है।

समाज का ढांचा चरमरा रहा है। चरित्र केवल शब्द कोश तक सीमित रह गया और पाश्चात्य सम्यता का अजगर हमारी सभ्यता और संस्कृति को निगल रहा हैं। हमारे सभ्य समाज को किसकी नजर लग गई कि पहले संयुक्त परिवारांे को विखण्डन हुआ। अब परिवार टूट रहे हैं और लड़को की भी इज्जत दांव पर लग रही है इसके बचाव का एक सुगम रास्ता है और वह है संयुक्त परिवार प्रणाली जिसमें मान मर्यादा अनुषासन और चरित्र की रक्षा हो सकती है तथा वर्तमान षिक्षण पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन के साथ साथ इस विषय पर समाज और न्यायपातिलका और सरकार को ध्यान देना होगा। अन्यथा उत्पीडन कभी विषफोटक हो कर सड़क पर आ सकता है। टिव्टर पर एक युजर ने तो लिख है कि पुरूष उत्पीड़न के मामले में समाज उदासीन है और वह आवाज नहीं उठाता।  अगहर पुरूष उत्पीड़न पर सरकारी स्तर पर कोई रिपोर्ट तैयार की जाए तो निष्चित तौर पर स्त्री से भी अधिक पुरूषों का उत्पीड़न हो रहा है।

सम्प्रति-
5-ई-339, जय नारायण व्यास
नगर, बीकानेर 334001
मो.नं.- 9610299299
7976262808



       

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