Saturday, 29 April 2017

देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां

पोथी : “देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां” 
(संचै : डॉ. नीरज दइया)
संस्करण 2017 कीमत 100/- 
पोथी मंगावण खातर संपर्क करो : 
प्रकाशक अर वितरक
राजस्थानी ग्रन्थागार
प्रथम माला, गणेश मंदिर के पास,
सोजती गेट, जोधपुर (राजस्थान)
दूरभाष
0291-2657531, 2623933 (o)  e-mail : info@rgbooks.net  /   website : www.rgbooks.net

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देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां इक्कीसवीं सदी में आज जद कहाणी केई मुकाम पार करती थकी जिण ठौड़ माथै आय ढूकी है उण में पठनीयता अर कथारस रो तोड़ो देख सकां। इण दौर में लोकभाषा में लिखीजी आं कहाणियां अर खास कर लोककथावां री हर कीं बेसी ई आवणी सुभाविक है। कहाणी परंपरा में कहाणी रो विगसाव भलाई किणी ठौड़ पूग जावो पण उण री जड़ां में लोककथावां रो कथारस पोख्यां ई ओ कथा-बिरछ पांगरैला। नीत-अनीत साम्हीं लोक-आरसी है- चावी लोककथावां। सांवठी संस्कृति अर बातपोसी रो नमूनो आं केई कहाणियां में देख सकां जिण में लोक न्याव अर अदल इंसाफ री बातां में निगै आवै। कहाणीकार देवकिशन राजपुरोहित की कहाणी जातरा नै इण संग्रै रै मारफत अेकठ देख्यां कहाणी विगसाव री बात करण मांय सुभीतो हुवैला।
देवकिशन राजपुरोहित (6 अक्टूबर, 1944) राजस्थानी भाषा, साहित्य अर संस्कृति रा लूंठा हिमायती। राजस्थानी अर हिंदी दोनूं भाषावां में खूब लिख्यो अर अजेस ई लिखण-छपण में पाछ कोनी। पांच कहाणी-संग्रै- ‘वरजूड़ी रो तप’ (1970), ‘दांत कथावां’ (1971), ‘मौसर बंद’ (1989), ‘बटीड़’ (2003) ‘म्हारी कहाणियां’ (2007) रै अलावा विविध विधावां में केई पोथ्यां अर ग्रंथावली ई प्रकाशित। देस-विदेस री केई जातरावां अर पत्रकारिता रो लांबो अनुभव। केई मान-सम्मान अर पुरस्कारां सूं आदरीज्या दाना मिनख।
ई-मेल dkrajp@gmail.com / मो. 7976262808
नीरज दइया (22 सितंबर, 1968) कवि, आलोचक अर संपादक रूप ओळखाण। निर्मल वर्मा रै कथा-साहित्य माथै शोध। केई पोथ्यां राजस्थानी अर हिंदी में प्रकाशित। अनुवाद अर बाल साहित्य खातर प्रांतीय-राष्ट्रीय स्तर माथै सम्मानित चावा-ठावा रचनाकार।
ई-मेल drneerajdaiya@gmail.com / मो. 9461375668
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पोथी री भूमिका 
सांगोपांग कहाणीकार देवकिशन राजपुरोहित
   
    बरसां सूं देवकिशन राजपुरोहित राजस्थानी भाषा, साहित्य अर संस्कृति रा लूंठा हिमायती मानीजै। आप रो रंग-रूप, बोली-चाली अर लेखन-संपादन स्सौ कीं दूजा सूं न्यारो-निरवाळो, इसो कै कोई होड नीं कर सकै। बियां हरेक रचनाकार आपरै भांत रो निरवाळो ई हुया करै, पण इण निरवाळैपणै में देवकिशनजी री बात निरवाळी। म्हनै केई वेळा विचार आवै कै ओ धोळी दाड़ी-मूंछा, धोती-कुडतै अर पाग आळो बूढो बाबो असल में राजस्थानी संस्कृति नै उत्तर आधुनिक हुयोड़ै समाज में अजेस संभाळ’र राखण रा जतन ई नीं करै, साचाणी सांगोपांग जीवै।
आपरी भाषा, साहित्य अर संस्कृति री हेमाणी री संभाळ करणियां घणा कमती मिनख निगै आवै। बेमाता रा लेख कै हरेक मिनख रै काळजै भाषा, साहित्य अर संस्कृति आगूंच बस्योड़ा हुवै। पण आज रो बदळतो बगत आपां रै मांयलै सोनल संसार नै उजाड़तो जाय रैयो है। घणै सूतम री बात कै इण अबखी वेळा रो लखाव हुयां पछै ई च्यारूंमेर मून दीसै। इण बदळाव रै बगत आ लांठी बात मानीजैला कै बिना किणी लोक-दिखावै सरल-सहज जीवण में रमणिया मारवाड़ रतन देवकिशन राजपुरोहित रै हियै राजस्थानी खातर अणमाप-अणथाग हेत हिलोरा लेवै। राजस्थानी रै खातै आप नैं सदा हरावळ देख सकां।  
    राजस्थानी अर हिंदी दोनूं भाषावां में देवकिशन राजपुरोहित बरसां सूं लगोलग लिख रैया है। आप खूब लिख्यो अर अजेस ई खूब लिखण-छपण में पाछ कोनी। न्यारी-न्यारी विधावां में राजपुरोहित जी री केई पोथ्यां अर ग्रंथावलियां आद प्रकाशित हुई। आप रै विराट व्यक्तित्व अर लेखन बाबत न्यारै-न्यारै विश्वविद्यालयां में केई शोध हुया अर ग्रंथ ई प्रकाशित हुया।
    देवकिशन राजपुरोहित रा पांच कहाणी-संग्रै राजस्थानी रै खातै- ‘वरजूड़ी रो तप’ (1970), ‘दांत कथावां’ (1971), ‘मौसर बंद’ (1989), ‘बटीड़’ (2003) ‘म्हारी कहाणियां’ (2007) छप्योड़ा। पैलड़ी तीन पोथ्यां छोटी-छोटी गुटका जिसी छपी, पण आगै री दोय पोथ्यां नै पूरी-पूरी पोथ्यां कैय सकां। राजस्थानी में पोथी प्रकाशन रै संकट नै देखता इसा लेखक साव कमती है जिकां रा पांच कहाणी-संग्रै प्रकाशित हुयोड़ा हुवै। इण पोथी ‘देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां’ नै तैयार करती बगत ध्यान राख्यो कै इण पोथी में लारली पोथ्यां सूं बानगी अेकठ साम्हीं आवै। आं कहाणियां में लोक-जीवण अर सांस्कृतिक-पख नै पोखण रा खास जतन कहाणीकार कर्या जिण सूं अै अजेस ई चावी-ठावी। आं रो पाठ आज ई जरूरी लखावै। आ कहाणियां में जीवण रो साच अर लोक री आत्मा जीवै, इणी खातर आज ई अै रचनावां बोदी नीं लखावै।
    देवकिशन राजपुरोहित (6 अक्टूबर, 1944) लगैटगै पच्चीस बरसां रै अैड़ै-गैड़ै कहाणियां लिखणी सरू करी। बरस 1970-71 रै आसै-पासै आधुनिक कहाणी रो जलम हुयो। ‘दांत कथावां’ इण बात रो परतख प्रमाण है कै लेखक लौकिक-साहित्य रै रंग में रंगीज्योड़ा हा। आपां रा चावा लोककथाकार विजयदान देथा अर दूजा कहाणीकारां दांई देवकिशन राजपुरोहित ई लोक में चावी छोटी-छोटी लोककथावां नै लिखित रूप ढाळण रो जसजोग काम कर्यो। भाषा रै लेखै ओ काम इण खातर घणो मेहतावू मानीजैला कै कहाणीकार लोक मांय चावी बातां नै सबदां में ढाळती बगत देसज सबद, ओखाणा, आड्यां, कहावतां-उगतियां अर दूहा-सोरठा आद नैं ई अंवेरै। लोक माथै किणी अेक रो घणियाप कोनी हुया करै- आ आपां री मोटी हेमाणी। कंठै रची-बसी आ कहाणियां नै लोक में बांचण, सुणण अर सुणावण रो सुख न्यारो-निरवाळो हुवै।
    लोककथावां री बुणगट अर कथारस में कैवणगत रो ऊंडो असर लियोड़ी आं बातां नै राजपुरोहित जी रै मूढ़ै सुणण रो रस सुणणियां ई जाण सकै, पण जस सबदां में नीं बखाण सकै। राज री नौकरी में जद देवकिशन जी मास्टर हा, आं कहाणियां रै मारफत आपरै बगत में बै घणा चावा रैया। आज ई जद बां रै मूंढै कोई कहाणी सुणां, तद लखावै कै सुणतां रैवां। मौकै-टोकै फबती अर ओपती बात कैवणी देवकिशनजी नै घणी आवै।  
    कहाणी-कला माथै विगतवार बात करां तो पैलै अर तीजै कहाणी-संग्रै रो नांव देख्यां ई ठाह लागै कै लोक-संस्कार अर समाज-सुधार आं कहाणियां रो खास सुर रैयो। कहाणी ‘वरजूड़ी रो तप’ में लोककथा री कैवणगत अर बरतकथा दांई नायिका वरजूड़ी रै तप रो बखाण करण री आंट आं ओळ्यां में देख सकां- “अेक ही छोरी। फूठरी फर्री। गोरी निचोर। नांव हो वरजूड़ी! चालती जाणै हथणी चालै। बोलती जाणै कोयलड़ी टहुकै। आंख्यां जाणै हिरणी सूं खोस’र लाई ही। व्हैला बरस पनरा’क री। मिसरी व्है ज्यूं मीठी बोलती ही। बिसी ईज वा गांव में फबती ही। वरजूड़ी आंख में घाल्योड़ी ई नीं खटकती।” कहाणी री छेहली ओळ्यां देखो- “पेमलो आपरै घरां आय’र सगळी बात लोगां नैं बताई। जद घासीरामजी माराज कैयो- वरजूड़ी रो तप पूरो व्हियो। अबै बा राजी-खुसी रैवै, आ ठाकुरजी सूं अरज करो।”
    देवकिशन राजपुरोहित री खासियत आ कै बै कला रै नांव माथै जूण रै किणी खास छिण का पल पतियारो नीं कर’र अेकठ अर बंधै-बंधायै आखै बगत नै अंवेरणो चावै। संजोग री प्रधानता आं कहाणियां री खासियत कैयी जावैला कै जिण सूं आं कहाणियां में बात कठै री कठै पूग’र आपरै मारग सीधी बधती जावै।
    आप री अेक चावी कहाणी ‘मौसर बंद’ में ठाकरां री ठरकाई साम्हीं जिको मास्टर लगोलग मंड’र जूझै, उण नै विगतवार बांच्या लखावै ओ कोई दूजो नीं खुद कहाणीकार देवकिशन राजपुरोहित ई हुय सकै। कहाणीकार मास्टर रूप हीरजी, ठाकरां रा कंवरां नैं समझाया हा कै थै मोसर मत मांडो। इण में कीं कोनी मिलै। गांव री स्कूल नैं बणाय’र नांव अमर करद्यो। मास्टर चावै कै गांव रा टाबरां री भणाई-लिखाई सावळ हुवै। उण रो ओ अेक सुपनो है, जिको बगत रै हाथां खोस लियो जावै। साथै ई उण साम्हीं नेम-कानून-कायदा री पोल-पट्टी ई प्रगट हुय जावै। ‘‘पेमजी होको गुड़गुड़ावता बोल्या- अरे थै तो अमल’र ओसर-मोसर बंद करण री बात कैवो हो, आ राज तो कैवै है कै टाबर ई बंद कर दो। दोन्यूं डोकरड़ा हंस्या।’’ जैड़ी ओळ्यां लोकमत नै बखाणै।
    आपां देख सकां कै अठै आजादी रै चाळीस बरसां पछै ई समाज रो असली कोढ ऊपरली आमदनी पांगर रैयो है। आ कहाणी बदळतै जुगबोध री व्यथा-कथा घणै वजनदार ढंग सूं मांड’र कैवै। ऊपरली आमदनी रो सोख राज में नीचै सूं लेय’र ऊपर तांई पसर्योड़ो है। नेम-कानून-कायदा रो भख लेवण में सगळा लाग जावै तद अेक मास्टर फगत ओळी- ‘मोसर बंद है’ सोचण रै सिवाय भळै कांई कर सकैै? भण्या-गुणिया थाणैदार, पटवारी, तहसीलदार अर अेसडीअेम रै मारफत समाज में विगसाव रा मारग मांयला आंटां सूं गुम जावण री जसजोग कहाणी है।
    कहाणी ‘बटीड़’ री बात करां तो आ नायिका तीजकी री बहादुरी री गिंगरथ नै बखाणै। इण कहाणी में घणी-लुगाई रै हेत बिचाळै संजोग अर रहस्य-रोमांच रो अनोखो मेळ देख सकां। “बा बोली- म्हनैं तो ठा कोनीं, पण हां! म्हैं लोटा रा तीन बटीड़ खांच’र मारिया पण ओ तो बापड़ो दूजा बटीड़ में ई मरगो। तीजो बटीड़ तो नफै खातै ई रैयो।” इण ओळी सूं सुभट देख सकां कै कहाणी में ओ तीजो बटीड़ नफै खातै चाल रैयो है। असल में आ लोक री बानगी है।
    लोक सूं जुड़ी आं कहाणियां में जूनी ओळूं री संभाळ है। आपां इण नै इयां मान सकां कै कहाणीकार री ओळू में थिर जूनो गांव अर लोक-विसवास रा चितरामां भेळै आपां रै माइतां री सीख अर संस्कार आपरी पळपळाट साथै अजेस आं कहाणियां में हरिया है। जुग-बदळाव अर उत्तर आधुनिकता री आंधी पछै ई आं कहाणियां में केई चितराम मिलै जिका किणी जूनी तसवीर दांई अजेस ई कहाणीकार सांभ’र राख्या है। इक्कीसवीं सदी में आज जद कहाणी केई मुकाम पार करती थकी जिण ठौड़ माथै आय ढूकी है, उण में पठनीयता अर कथारस रो तोड़ो देख सकां। इण दौर में लोकभाषा में लिखीजी आं कहाणियां अर खास कर नै लोक कहाणियां री हर कीं बेसी ई आवणी सुभाविक है। लोक री हेमाणी लियां देवकिशन राजपुरोहित आपरी कहाणियां में भरपूर कथारस नै सांभाळ’र राखण रा जतन करता साम्हीं आवै। 
    कहाणी परंपरा में कहाणी रो विगसाव भलाई किणी ठौड़ पूग जावो पण उण री जड़ां में लोककथावां रो कथारस पोख्यां ई ओ कथा-बिरछ पांगर सकैला। नीत-अनीतअर साच-कूड़ साम्हीं लोक रो आरसी है- चावी लोककथावां। सांगोपांग आपणी संस्कृति रा केई नमूना आ कहानियां में मिलैला जियां कै लोक न्याव अर अदल इंसाफ री बातां। आं कहाणियां में गांव अर केई चरित्र आपरै भोळपणै मांय जूनी ओळूं सजीव करै। हास्य अर व्यंग्य रै सांवठै मेळ सूं सजी राजपुरोहित जी री इण संग्रै री केई कहाणियां हियै ढूकती यादगार कहाणियां मानी जाय सकै।
    सार रूप में कैवां तो लोक में रची-बसी कथावां रा देवकिशन राजपुरोहित सांतरा कहाणीकार है। लोक में बै कथावां ई चावी रैवै जिण मांय कथारस भरपूर हुवै। लोक नै सीख अर दिसा देवण रो काम अै कहाणियां करती रैसी। पतियारो है कै पाठक आं कहाणियां रै मारफत लोकरंग, जीवण अर संस्कृति सूं खुद नै सिमरध करसी।
- नीरज दइया
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Sunday, 16 April 2017

                                                                   चूहा-चरित्रम्
                                                                                                              - देवकिशन राजपुरोहित
        संसार में भिन्न भिन्न प्रजातियों के प्राणी पाए जाते हैं। उन्ही प्राणियों में चूहा भी एक जीव है। यह स्तनधारी, काले व भूरे रंग का होता है तथा गर्म देषों में ज्यादा पाया जाता है। इस समय उत्तर प्रदेष के चुनावों में चूहा चर्चा में है। हमारे देष की सबसे बड़ी पार्टी जिसके पण्डित नेहरू जी सर्वे सर्वा थे, अब पतन की ओर सबसे छोटी होने जा रही कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी ने एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चूहें की संज्ञा दे दी कि ‘‘मोदी तो चूहा है।
        उनका कथन सुनकर कोई आष्चर्य नहीं हुआ क्योंकि उनके नेतृत्व में पार्टी का पतन निरन्तर जारी है। कभी हाथी जैसी भारी भरकम पार्टी कांग्रेस अब चूहे जैसी हो गई है, और वह समय दूर नहीं अगर यही दषा रही तो किसी कीड़े मकोड़े जैसी भी हो सकती है खैर हमें पार्टी से क्या लेना देना। हमें तो चूहा से मतलब है। हम पार्टी छोड़कर चूहे की तरफ चले।
         जैसे कि सब जानते हैं हमारे देष में प्रथम पूज्य गणेष भगवान हैं। ़ऋद्धि-सिद्धि, शुभ लाभ दायक गणेष से ही सभी कार्यो का श्री गणेष याने शुभारंभ होता है। बिना श्री गणेष कोई कार्य सम्पन नहीं होता है। मॉ शारदा के साथ साथ मैं भी अपनी रचना का श्री गणेष,गणेष भगवान को स्मरण कर करता हूॅ। गणेष भगवान का भी एक वाहन है। वह वाहन है चूहा। चूहे को मूषक भी कहते हैं। इस प्रकार श्री गणेष के समय गणेष भगवान के साथ चूहे की भी पूजा की जाती है। अगर श्री गणेष में चूहे को भुला दिया जावें तो कार्य सानन्द सम्पन्न हो ही नहीं सकता। शायद राहुल बाबा ने भगवान श्री गणेष का स्मरण चूहे के माध्यम से ही किया होगा और समझने वालों ने कुछ ओर अर्थ निकाला हो तो पता नहीं।
     चूहा कोई मामूली प्राणी तो है नही। उसका जितना आकार छोटा उससे भी बड़े तो उसके कारनामें है। कारनामें शब्द का प्रयोग शायद आपको कुछ अटपटा लगे। मगर एक बार भगवान श्री कृष्ण के विवाह में जब गणेषजी को निमंत्रण नही दिया तो उनके चूहे के नेतृत्व में सभी चूहों ने धरती में बिल बना बनाकर बारात को ही रोक दिया। अन्त में भगवान कृष्ण ने गणेष भगवान से क्षमा याचना कर उन्हे प्रथम पूज्य बना कर पहले उन्ही का विवाह ऋद्धि सिद्धि के साथ सम्पन्न कराया।
     चूहों के ही कारण या उनके कारनामों से देष में प्लेग फैला था। और जनसंख्या नियंत्रित हो गई थी। विक्रम संवत 1974 से 1976 में वह उस महामारी से राजस्थान की जनसंख्या आदि हो गई थी।
     राजस्थान में बीकानेर के विष्व प्रसिद्व करणी माता के मन्दिर में तो हजारों चूहे है जिनकी पूजा होती है। दूध और लड्डू चढाये जाते हैं। दुनिया भर के सैलानी यहॉ आकर चमत्कारिक चूहों के दर्षन करते है। शायद राहुल बाबा को किसी ज्ञानी ने चूहों के कारनामें बता दिये होगे तब उन्हांेने चूहे को याद किया ताकि कांग्रेस का अब और पतन ना हो। 
       चूहा परिश्रमी प्राणी है। दिन रात भागता रहता है। वह दिन भर कुछ ना कुछ खाता भी रहता है। चूहा जमीन में बिल बनाकर रहता है। वह नित्य नये बिल बनाता है। क्यांेकि उसके बिलों में तो सांप घुस जाता है। सांप कभी बिल नहीं बनाता। सांपो के बिल बनाने का निस्वार्थ श्रम केवल चूहा ही करता है। चूहा परिश्रमी व निस्वार्थ प्राणी है। हालाकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो चूहे पर क्या षिक्षा ली,नही बताया। किन्तु वह चूहे से भी कोई ना कोई प्रेरणा लेते ही रहे होगे। ऐसा माना जाना चाहिए।
       चूहों पर पंचतंत्र-हितोपदेष आदि में कई ज्ञान वर्धक कहानियॉ भरी पड़ी है। जिनमें कबूतरों का जाल काटना,आदि प्रमुख है। चूहे का दुषमन सांप और बिल्ली है। वह अपने कार्यो के साथ साथ स्वयं के प्राणों की रक्षा भी करता है। चूहे प्राय उन घरों में अधिक होते है जहां अनाज खुले में पड़ा हो और घर कच्चे हो। घरों में चूहे कपड़ो को कुतरने का कार्य करते है और लोग चूहा भगाने,चूहा पकड़ने और चूहा मारने के निरन्तर प्रयास करते हैं। सरकार को प्रथम पूज्य गणेष वाहन मूषक या चूहे के संरक्षण संवर्धन की कोई योजना बनानी चाहिए और चूहों पर विषेष शोध भी करानी चाहिए। हालांकि प्राणी विज्ञान के शोधार्थियों ने चूहो पर भी शोध कार्य अवष्य किया होगा।
         इस समय देष द्रोहियों,बलात्कारियों,हत्यारों को मानवाधिकार और संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का लाभ दिया जाता है। बड़े बड़े वकील और राजनेता उनकी पैरवी करने के लिए सदैव तैयार रहते है। फिर चूहों को जहर देकर हत्याऐ करने वालों तथा पिंजरो में पकड़ने वालों पर रोक लगाई जायें और चूहों के जीने,खाने-पीने,कपड़े कुतरने के मौलिक अधिकार बहाल किये जाऐ।
          मोदी को आम सभाओं में चूहा चूहा कहने वाले राहुल बाबा उत्तरप्रदेष के चुनाव परिणाम के बाद से ना जाने चूहे के किस बिल में छुप गए है। कही दिखाई ही नहीं दे रहे है। अब योगी सरकार और मोदी सरकार का दायित्व बनता है कि सारे बिलों की जॉच कर राहुल बाबा को निकाल कर संसद में लेकर आऐ अन्यथा उन पर राहुल बाबा के अपहरण का आरोप भी लग सकता है।

                                                  सम्प्रति 
                                            द्वारा - एडवोकेट नरेन्द्र सिंह राजपुरोहित
                                                    राजपुरोहित भवन के सामने
                                                    इन्द्रा कॉलोनी बीकानेर, मो. 7976262808
                                                        


 मनोहर जाणी

जब में व्यंग पात्र बना

                                          जब में व्यंग पात्र बना
                                                                                                                   - देवकिशन राजपुरोहित 
             बात 1966-67 की है मैं राजकीय मल्टीपरपज हायर सैकण्डरी स्कूल चौहटन, जिला - बाड़मेर (राजस्थान) में सहायक अध्यापक था। चौहटन राजस्थान की पाकिस्तान सीमा के निकटवर्ती एवं गांव था और कस्बे मे तब्दील हो रहा था। मेरे प्रधानाचार्य दुर्गा प्रसाद जी शर्मा ने मेरे को साहित्य-संस्कृति का इंचार्ज बना रखा था। साप्ताहिक बाल सभाओं के मेरे द्वारा किए जाने वाले कार्यक्रमों से उत्साहित हो कर प्रधानाचार्य जी ने मेरे को एक आदेष दिया कि स्कूल के वार्षिकोत्सव पर एक शानदार आयोजन व नाटक का आयोजन किया जावें।
     कुछ नाटकों के चयन के बाद दुष्यन्त-षकुन्तला नाटक पर निर्णय हुआ। पूरा नाटक तैयार किया गया। उसमें संवादों का चयन इस प्रकार किया गया कि मार्मिकता मुंह बोलने लगी। अब इस नाटक में शकुन्तला किसे बनाया जावे और दुष्यन्त कौन हो ?
     उस जमाने में आज की तरह न लड़कियों में इतना खुल्लापन था और न खुल कर कोई लड़की किसी लड़के के साथ प्रेम और आलिगंन बद्व होने को तैयार होती थी। एक लड़के ने दुष्यन्त बनना स्वीकार कर लिया। लड़का,गौरा,चिट्टा,हंसमुख पूरा लम्बा था और हमारी स्कूल में वह सब से सुन्दर था। मगर शकुन्तला की खोज अभी बाकी थी। एक दिन दुपहर को एक लड़की ने आकर झिझकते हुए शकुन्तला का रोल करने के लिए अपनी इच्छा प्रकट की। लड़की बहुत ही सुन्दर,रूपवती और उस जमाने की किसी सिने नायिका से कम नहीं थी। मैंने उसे पूरी तरह से समझा बुझा कर फाईनल कर लिया।
     दूसरे दिन दुष्यन्त-षकुन्तला को आमने सामने किया। दोनों को उनके डायलाग समझा कर डायलाग याद करने के लिए दे दिए। एक दिन उनके डायलाग सुने फिर उन्हें आमने सामने डायलाग बुलाए। फिर धीरे धीरे रिहर्सल कराया और एक दिन उनका फाईनल रिहर्सल कराया। दोनांे के संवाद से आष्वस्त होने के बाद मैंने प्रधानाचार्य जी के सामने फाईनल रिहर्सल कराया। दोनों के रिहर्सल को देख कर प्रधानाचार्य जी आष्वस्त हो गये।
     प्रधानाचार्य जी ने उप निदेषक षिक्षा जोधपुर श्री अहमद अलीजी और जिला षिक्षा अधिकारी बाड़मेर देवीसिंहजी डोगरा को भी आमंत्रित किया था। दोनों अतिथि एकं दिन पूर्व मे ही आ गए थे। मैंने नाटक वाले दिन दोनों को उपयुक्त वेष भूषा घारण करवाई उनका मैकअप किया लड़के को एक शानदार पौषाक विधायक फतेहसिंहजी के यहां से लाकर पहनाई थी जिसे पहन कर वे जोधपुर महाराजा के उत्सवों में जाया करते थे। दुष्यन्त एकदम राजकुमार लग रहा था। शकुन्तला के लिए पोकरजी खत्री को कट कर एक नई शादी शुदा लड़की की शादी की पौषाक घारण कराई। हाथों में हाथी दान्त का चूड़ा पहनाया मेंहदी लड़की रात को ही लगा ली थी। लड़की का मैकअप, काजल,टीकी सब करने पर वह इतनी सुन्दर लग रही थी जैसे वह कोई राजरानी ही हो। दोनों को पूरी तरह सजाकर और एक बार फिर रिहर्सल लिया। मैं बहुत अधिक उत्साहित था कि आज बड़े अफसरों के सामने मेरे कार्य का मूल्यांकन होने वाला था।
     साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम में अनेक छात्र छात्राऐं एकल गान, एकल नृत्य, समूह गान, समूह नृत्य, एकाभिनय, वाद विवाद, भाषण कविता पाठ में भाग ले रहे थे। सब का क्रम मैंने ही निर्घारित किया 
था और अन्त में नाटक होना था। सभी प्रतियोगिताओं को उपर्युक्त तरीके से तैयार कर एक बड़े कमरे में लिख दिया गया था। मंच के लिए एक आश्रम से और ठाकुर हेमसिंहजी, विधायक फतेह सिंहजी और समर्थसिंहजी के यहा से लकड़ी के बने पाटे मंगा लिए थे मंच निर्माण भी मेरी  ही डयूटी थी। माईक बाड़मेर से मंगवाया गया था।
     सारी तैयारी शाम 4 बजे ही हो गई थी। संध्या 7 बजे कार्यक्रम आरम्भ करना था। समय तो बीत ही नहीं रहा था जैसे घड़ी के सुए थम गए थे। बड़ी मुष्कील से 6 बजे और मैंने माईक टेस्ट किया। एक बाड़मेर के फोटो ग्राफर को भी बुला रखा था। उसने भी अपना कैमरा तैयार किया। उस समय ग्रामोफोन पर एक रिकार्ड लगाया जिसमें लतामंगेषकर का राष्ट्रभक्ति का गाना ‘‘ऐ मेरे वतन के लोगों ’’बजाया जाने लगा प्रकाष व्यवस्था के लिए चार गैस जला लिए थे। ग्रामीण खूब आ गए थे। उस समय सोफो का चलन नहीं था इसलिए पाटों पर ही अतिथियों के लिए बिस्तर बिछा एि गए थे। प्रधानाचार्यजी ठीक सात बजे अतिथियों को लेकर आ गए। पूरे 7 जिलों के मण्डल जोधपुर के उपनिदेषक अहमद अलीजी मंच पर पधारे। उनके दाऐं बाये जिला षिक्षा अधिकारी बाड़मेर देवीसिंह जी डोगरा और हमारे प्रधानाचार्य दुर्गाप्रसाद जी शर्मा थे। मैं माचिस लेकर खड़ा था। सरस्वती के सामने दीप प्रज्वलन होना था। बार बार कई तिलियों से भी दीप प्रज्वलित नहीं हुआ आखिर बड़ी मुष्किल से दीप जला अतिथि अपने स्थान पर चले गए। सर्व प्रथम सरस्वती की स्तुति पं. लेखराजजी शर्मा ने की और फिर स्वागत गीत छात्राओं ने किया।
        आखिर छोटे बड़े कार्यक्रमों के बाद शुरू हुआ मेरा नाटक दुष्यन्त शकुन्तला नाटक ने ऐसा समा बांधा कि कई बार तालियां बजी तो कई बार लोगो ने भावुक हो कर आसू भी पौंछे। पूरा डेढ घंटा नाटक विष्वामित्र से नाटक का आरम्भ और भरत के राज्यसिहासण पर समाप्त।
        उस जमाने में आज की तरह अतिथियों के लिए कोई बड़ा ताम झाम नहीं होता था। न मालाऐं न साल न बुके और न साफे फिर सुदूर गांव में मालाओं का तो कोई सवाल ही नहीं। फिर भी दिन में 10 पैसे वाली रेषमीन 10 मालाएं मैने मंगा कर अतिथियों के स्वागत के लिए मंच पर रखी थी किन्तु अति उत्साह में मैं मालाओं से स्वागत भूल गया था। नाटक समापन पर था। मालाऐं मंच पर लटक रही थी। अहमद अली जी बहुत ही विद्धान, चतुर षिक्षा शास्त्री थे। उनकी मालाओं पर नजर पड़ गई थी। वे अपने स्थान से उठे साथ मे देवीसिंह जी और हमारे प्रधानाचार्य जी भी उठे अचानक मालाऐ लेकर मंच पर चढ़ गए। अभी कार्यक्रम समापन नहीं हुआ था। उन्होने कलाकारों से माईक ले लिया और खूब तारीफ भी की, उन्होने कहा मेरे अधीन 7 जिलों में ऐसा सांस्कृतिक कार्यक्रम उन्होने कहीं नहीं देखा। एक माला दुष्यन्त को और एक माला शकुन्तला को पहना कर खूब आर्षीर्वाद दिया। दोनो बच्चे गद्गद् मेरी तो खुषी का ठिकाना ही नही था। अचानक वे मेरी ओर मुड़े शेष सात मालाऐं मेरे गले में डाली ओर मुझे बांहो में भर लिया। मेरी आंखो से खुषी की आश्रुधाराऐं बह निकली। मेरे वरिष्ट साथी तो जल भुन गए। यह वह जमाना था जब उपनिदेषक के सामने जिला षिक्षा अधिकारी और प्रधानाचार्य की तो जाने की हिम्मत तक नहीं होती थी। मेरी खुषी का कोई ठिकाना नही था। रात्रि बारह बजे कार्यक्रम समाप्त हुआ। छात्र और अध्यापक जा चुके थे कार्यक्रम के बाद में अतिथियों को भोजन कराना और उनके सोने की व्यवस्था भी मेरे जिम्मे थी। स्कूल के कमरों मंे खाट बिस्तर गांव के सम्पन्न लोगों से मांग कर लाए थे। लगभग दो बजे मैं जब कार्य मुक्त हुआ तो पास ही एक झोपड़े मे रहता था वहां चला गया। खुषी के मारे नींद का नामोनिषां नही था।
      यही कोई चार बजे होगे। किसी ने दरवाजा खटखटाया तो तुरन्त दरवाजा खोला। बाहर शकुन्तला के पिताजी लालटेन लिए खड़े थे। उनके दो भाई और लड़का भी था। तपाक से पूछ बैठे- हमारी बच्ची कहाँ है। घर पर नहीं आई। अपनी सहेलियों के पास भी नहीं है।
       मेरी सारी खुषियों पर पानी फिर गया। मै अपराधी की भांति कांपने लग गया। चपलें पहनी और उन्हे साथ लेकर दुष्यन्त के घर पहुचा। दुष्यन्त के पिता ने कहा वह तो घर आया ही नहीं। हमने सोचा शायद स्कूल में ही सो गया होगा। अब तो मामला ओर संगीन हो गया। लड़की ओर लड़का दोनांे लापता थे। उनके परिजन खोज बीन में लग गए। मैं घर ना जाकर वापस स्कूल गया। प्रधानाचार्यजी को पूरी जानकारी दी। जानकारी उन्होने अहमद अलीजी और देवीसिंहजी को दी। दोनों अधिकारी चाय पीकर जीप से बाड़मेर चले गये।
जंगल में आग की तरह खबर पूरे गांव में फैल गई। सारे मेरे साथी मास्टर बहुत खुष हुए। स्कूल खुलने से पहले ही वे स्कूल पंहुच गए। उपनिदेषक की शाबासी तो चार घंटे रही मगर मेरे साथियों की खुषियां और मेरी जलालत बढ़ गई। दिन भर साथी कहते रहे ओर करो नाटक! कोई कहता दुष्यन्त-षकुन्तला कहाँ है। मैं दुपहर को ही अपने झोपड़े में चला गया। मगर जो साथी मेरे मजे लेने वाले थे वे मेरे झोपड़े पर ही बारी बारी से आने लग गए। धैर्य बंघाते कि चिन्ता मत करो। तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। गांव के भी भले भले आदमी आने लग गए। कैसे हुआ ? आपको पता नहीं था क्या ? सरपंच भगवानदास डोसी भी रात को कार्यक्रम में थे। आए। घैर्य बंधाया ओर बोले-पुलिस में कैस नही देना है वर्ना स्कूल ओर बच्चों की बदनामी हो जाएगी। क्या जबाब देता ? आखिर तीन दिन बाद दोनो जोधपुर में मिल गए उनके घर वालों ने भी पुलिस कैस बदनामी के कारण नहीं किया। मेरी सांस में सांस आई मगर टोटिंग निरन्तर जारी थी। मैं अब लोगों के व्यंग्य बाणों का षिकार था इन व्यंग्य बाणों ने आज तक मेरा पीछा नही छोडा है। स्थानान्तरण हो गया जब कभी भी पुराणे साथी मिलते तो देखते ही पहले मुस्कुराते ओर कह देते क्यो ? ओर कभी कोई नाटक कराया क्या अब आज भी वह घटना याद आती तो रोमांच हो जाता है। यदि उस समय आज जैसा इलेक्ट्रानिक मिडिया दिया होता तो .... ? यह विचार आते ही सिहर उठता हॅू।


                                         सम्प्रति - 5 ई- 339 जयनारायण व्यास नगर
                                                      बीकानेर 334003 
                                                     मो. 7976262808
                                                 कातंरच/हउंपसण्बवउ

पुरूष उत्पीड़न; एक नजर

                                                           पुरूष उत्पीड़न; एक नजर

                                                                                                                      देवकिशन राजपुरोहित

समाचार पत्र, टीवी-चैनल या आकाशवाणी पर ज्यौंही बलात्कार शब्द आता है, पाठक या श्रोता किसी महिला या लड़की के साथ जबर्दस्ती भोग का अनुमान लगा कर बाद में समाचार में रूचि लेते हैं। इसकी चर्चाऐं आम हो जाती है। मामला थाने ओर अदालत में जाता है। पूरे पुरूष वर्ग पर फबत्यिा कसी जाती हैं। इतना ही नहीं भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 भी पुरूषों के ही विरोध में है। नारी शोषण, नारी उत्पीड़न आदि अनेक सरकारी ओर गैर सरकारी संस्थऐं कार्य करती हैं, नारी रक्षा के लिए। राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर महिला आयोग बने हैं, जो नारी को संरक्षण देते हैं और पुरूषों को कठघरे में खड़ा करते हैं, किन्तु जब लड़कों के साथ कोई लड़की बलात्कार करती हैं अनेक मनचली लड़कियां, जबरन लड़कों को पकड़ कर उनके साथ बलात्कार करती है, और लड़के अपनी बेईमानी इज्जत से डरकर उसे छिपाते हैं। अगर वे पुलिस में चले जाऐं तो उनका मखौल उड़ाया जाता है। अनेक युवक इसके शिकार हैं। अगर वे विरोध करें तो लड़कियां उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज करा देती हैं। बाकी लड़के ब्लेकमेंलिंग के शिकार होते हैं। लड़कों द्वारा लड़कियों के विरूद्ध बलात्कार के प्रकरण शून्य के बराबर है। आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में 10 लड़कियों ने 7 जून को एक लड़के के साथ बलात्कार किया था और यह प्रकरण चर्चित रहा। कानपुर के विधोनी में भी एक लड़की ने एक लड़के के साथ उसी वर्ष जून में बलात्कार किया था। यह प्रकरण आने के बाद लड़के की ही मर्दानगी पर प्रश्न चिन्ह लगे। परिणाम अन्य लड़के फिर हिम्मत नहीं जुटा पाए। साऊथ दिल्ली बसन्त कुज्ज नॉर्थ में एक होटल में 26 वर्ष की युवती द्वारा 17 वर्षीय लड़के के साथ बलात्कार किया गया ओर उस युवती का पोकसो एक्ट में मामला दर्ज हुआ चैम्बूर में एक 16 वर्षीय लड़के ने अपने खास मित्र की मा पर आरोप लगाया कि वह एक दिन मित्र से मिलने गया तो मा ने कहा कि अन्दर आ जाओ उसका इन्तजार करो। उसके बाद उस मित्र की माने बलात्कार किया। यह क्रम 3 माह तक चला तब उसने अपने पिता को बताया ओर पुलिस की शरण ली। इसी तरह जिम्बाबवे में तीन लड़कियों ने एक लड़के को अपनी कार में लिफ्ट दी ओर उन्होंने उस लड़के के साथ बारी बारी से बलात्कार किया। उतरप्रदेश के सहारनपुर के एक लड़के के साथ एक लड़की ने अपनी दो सहेलियों के सहयोग से बलात्कार किया। तमिलनाडु में तीन लड़कियों ने 25 मई को अपने घर बुला कर एक लड़के से बलात्कार किया 2 दिसम्बर 14 को तो एक लड़के के साथ गैंगरेप भी हुआ। 28 अप्रैल 2008 को सिंगापुर में 13 वर्ष के लड़के के साथ 5 लड़कियों द्वारा गैंगरेप किया गया 12 अक्टूबर 2007 को स्वीडन में एक तेरह वर्षीय लड़के का गैंगरेप चर्चा में रहा। एसे सैकड़ो उदाहरण भी हैं कि लड़कियों ने लड़को के साथ बलात्कार किया ओर बाद में पुलिस के हवाले कर दिया। अनेक लड़कियों द्वारा लड़को को फंसाकर ब्लेक मेल भी किया जाता हैं।
भारत में आदिकाल से नारी पूज्या रही है जहां कहा जाता है‘‘ यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता‘‘। नारी सदैव अर्द्धागिनी है अर्थात् वह पुरूष के समान रही है। आज आधुनिक लोग स्त्री को समानता के अधिकार की बात करते है वह तो पहले से ही है, नया क्या है? पुरूष कमाता है। पत्नी घर गृहस्थी संभालती है। हसते खेलते दाम्पत्य में अचानक कुछ लोग गृहस्थी में जहर घोलने का काम करते हैं। हमारी परम्पराओं और मान्यता में दखल न दिया जाय तो ही उचित है। हमारी नारियां चाहे पर्दे में रहे। बुर्के में रहे या न रहें। क्यों ले जाया जा रहा है समानता के नाम पर।
आजकल बड़े शहरों की अनेक लड़कियां कालेज पहुंचते पहुंचते बाय फ्रेण्ड बना लेती हैं। शादी के बाद भी वे उन्हें छोड़ना नहीं चाहती। ससुराल वालों और पति का विरोध बाय फ्रेण्ड से मिलने पर हो तो अगले ही दिन पुलिस आपके द्वार यह सब पात्र उदाहरण है।
पति द्वारा पत्नी का उत्पीडन, शोषण दहेज की मांग, जान से खतरा, पति के परिवार से परेशानी जैसी शिकायतों के कारण अनेक पुरूष जेलों में सड़ते हैं। पति-पत्नी के तलाक के पूरे देश में लाखों प्रकरण बन चुके हैं। मामूली बात पर पति द्वारा पत्नी को उलाहना देना पति और उसके परिवार के लिए गले की हड्डी बन जाता है मगर उस बेचारे की कौन सुने? उसका गुनाह मात्र इतना है कि वह पति और पुरूष भी।
कई पत्नियां पति का मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, दैहिक शोषण करती हैं मगर वह मन मारकर सहता रहता है। अनेक पत्नियां पति व ससुराल पक्ष को आत्मदाह या अन्य किसी प्रकार से आत्महत्या की धमकी दे कर परिवार को आफत में डाल देती हैं।

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अनेक पत्निया तो जब तक पति के साथ गाली गलौज न करे या उसकी पिटाई न करे तब तक उन्हें भोजन नहीं पचता। इस पर यूएन द्वारा कराए गए एक सर्वे मंे पतियों को पत्नियों द्वारा पिटाई में विष्व में प्रथम इजिफ्ट है और दूसरे स्थान पर यूके को माना गया है जबकि भारत तीसरे स्थान पर है पतियों की पिटाई के लिए बेलन, बेल्ट, जूते, झाडू, किचन के अन्य उपकरण काम में लिए जात है।  बात-बात पर कई पत्नियां तो पीहर जाने, ओर मामला दर्ज कराने की धमकियां देती हैं। सहन करो, मन की पीड़ा मन में रखो, अन्यथा चार दीवारी से बाहर बात गई और हो गई बदनामी। अगर कभी पौरूष जग गया तो भारतीय दण्ड संहिता की अनेक धाराओं का सामना करो।
तलाक, नारी उत्पीडन ओर दहेज के अधिकतर प्रकरणों में पत्नी का स्वैच्छारिक होना चरित्रहीन होना, घर के काम न करना, ससुराल पक्ष को कानून की आड़ में ब्लेकमेल करना मुख्य होता है। एसे प्रकरणों में लड़की के माता-पिता द्वारा लड़की का सहयोग करना आग में घी का काम करता है। जिस लड़की की शादी धूम धाम से की थी गृहस्थी उजड़ जाती है, ओर वह लड़की परित्यक्ता बन कर किसी के चंगुल में फंसकर अपना भविष्य दांव पर लगा देती है। शादी के बाद एक वर्ष के अन्दर अन्दर सैकड़ों नहीं हजारों प्रकरण दहेज प्रताड़ना के नाम पर तलाक और रूपये मांगने के लम्बित हैं।
ऐस अनेक प्रकरणों को देखने ओर एकाध प्रकरण में तो मैने स्वयं ने बीच बचाव तक भी किया। कुल मिला कर महिला उत्पीडन से अधिक पुरूष उत्पीड़ित है मगर उसकी कोई भी सुनवाई करने वाला नहीं। न पुलिस, न अदालत, न सरकार और न कोई पुरूष आयोग या अन्य अनेक एसे भी प्रकरण है कि शादी के तुरन्त बाद नवविवाहिता घर के गहने कपड़े लेकर फुर्र हो जाता है और दहेज का मामला दर्ज करवा कर पति पक्ष से मोटी रकम की भी मांग करती है। पति और ससुराल पक्ष जेल में और वह अपने बॉय फ्रेण्ड के घर पर!
अनेक शहरों के पत्नी पीड़ितों ने तो पत्नी पीड़ित संघ बना कर पत्नियों से बचने के लिए सरकार का ध्यान भी आकर्षित किया किन्तु उनकी कौन सुने? राजस्थान के जोधपुर में तो पत्नी पीड़ितों ने बाकायदा जुलूस भी निकाला था ओर त्रामिमाम् चाहिमाम मच गई।
हमारे सभ्य समाज को किसकी नजर लग गई कि पहले संयुक्त परिवारों का विखण्डन हुआ। अब परिवार टूट रहे हैं और लड़को की भी इज्जत दांव पर लग रही है। इसके बचाव का एक ही सुगम रास्ता है और वह है संयुक्त परिवार प्रणाली जिसमें मान मर्यादा अनुशासन और चरित्र की रक्षा हो सकती है। इस विषय पर समाज और न्यायपालिका और सरकार को ध्यान देना होगा। अन्यथा पुरूष उत्पीडन कभी विषफोटक हो कर सड़क पर आ सकता है।
समाज का ढांचा चरमरा रहा है। चरित्र केवल शब्द कोश तक सीमित रह गया और पाश्चात्य सम्यता का अजगर हमारी सभ्यता और संस्कृति को निगल रहा हैं। हमारे सभ्य समाज को किसकी नजर लग गई कि पहले संयुक्त परिवारांे को विखण्डन हुआ। अब परिवार टूट रहे हैं और लड़को की भी इज्जत दांव पर लग रही है इसके बचाव का एक सुगम रास्ता है और वह है संयुक्त परिवार प्रणाली जिसमें मान मर्यादा अनुषासन और चरित्र की रक्षा हो सकती है तथा वर्तमान षिक्षण पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन के साथ साथ इस विषय पर समाज और न्यायपातिलका और सरकार को ध्यान देना होगा। अन्यथा उत्पीडन कभी विषफोटक हो कर सड़क पर आ सकता है। टिव्टर पर एक युजर ने तो लिख है कि पुरूष उत्पीड़न के मामले में समाज उदासीन है और वह आवाज नहीं उठाता।  अगहर पुरूष उत्पीड़न पर सरकारी स्तर पर कोई रिपोर्ट तैयार की जाए तो निष्चित तौर पर स्त्री से भी अधिक पुरूषों का उत्पीड़न हो रहा है।

                                                                                                                    सम्प्रति-

                                                                                                    5-ई-339, जय नारायण व्यास                  
                  जानी                                                                                नगर, बीकानेर 334001
                                                                                                     मो.नं.- 9610299299
                                                                                                              7976262808



पुरूष उत्पीड़न; एक नजर

देवकिशन राजपुरोहित

समाचार पत्र, टीवी-चैनल या आकाशवाणी पर ज्यौंही बलात्कार शब्द आता है, पाठक या श्रोता किसी महिला या लड़की के साथ जबर्दस्ती भोग का अनुमान लगा कर बाद में समाचार में रूचि लेते हैं। इसकी चर्चाऐं आम हो जाती है। मामला थाने ओर अदालत में जाता है। पूरे पुरूष वर्ग पर फबत्यिा कसी जाती हैं। इतना ही नहीं भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 भी पुरूषों के ही विरोध में है। नारी शोषण, नारी उत्पीड़न आदि अनेक सरकारी ओर गैर सरकारी संस्थऐं कार्य करती हैं, नारी रक्षा के लिए। राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर महिला आयोग बने हैं, जो नारी को संरक्षण देते हैं और पुरूषों को कठघरे में खड़ा करते हैं, किन्तु जब लड़कों के साथ कोई लड़की बलात्कार करती हैं अनेक मनचली लड़कियां, जबरन लड़कों को पकड़ कर उनके साथ बलात्कार करती है, और लड़के अपनी बेईमानी इज्जत से डरकर उसे छिपाते हैं। अगर वे पुलिस में चले जाऐं तो उनका मखौल उड़ाया जाता है। अनेक युवक इसके शिकार हैं। अगर वे विरोध करें तो लड़कियां उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज करा देती हैं। बाकी लड़के ब्लेकमेंलिंग के शिकार होते हैं। लड़कों द्वारा लड़कियों के विरूद्ध बलात्कार के प्रकरण शून्य के बराबर है। आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में 10 लड़कियों ने 7 जून को एक लड़के के साथ बलात्कार किया था और यह प्रकरण चर्चित रहा। कानपुर के विधोनी में भी एक लड़की ने एक लड़के के साथ उसी वर्ष जून में बलात्कार किया था। यह प्रकरण आने के बाद लड़के की ही मर्दानगी पर प्रश्न चिन्ह लगे। परिणाम अन्य लड़के फिर हिम्मत नहीं जुटा पाए। साऊथ दिल्ली बसन्त कुज्ज नॉर्थ में एक होटल में 26 वर्ष की युवती द्वारा 17 वर्षीय लड़के के साथ बलात्कार किया गया ओर उस युवती का पोकसो एक्ट में मामला दर्ज हुआ चैम्बूर में एक 16 वर्षीय लड़के ने अपने खास मित्र की मा पर आरोप लगाया कि वह एक दिन मित्र से मिलने गया तो मा ने कहा कि अन्दर आ जाओ उसका इन्तजार करो। उसके बाद उस मित्र की माने बलात्कार किया। यह क्रम 3 माह तक चला तब उसने अपने पिता को बताया ओर पुलिस की शरण ली। इसी तरह जिम्बाबवे में तीन लड़कियों ने एक लड़के को अपनी कार में लिफ्ट दी ओर उन्होंने उस लड़के के साथ बारी बारी से बलात्कार किया। उतरप्रदेश के सहारनपुर के एक लड़के के साथ एक लड़की ने अपनी दो सहेलियों के सहयोग से बलात्कार किया। तमिलनाडु में तीन लड़कियों ने 25 मई को अपने घर बुला कर एक लड़के से बलात्कार किया 2 दिसम्बर 14 को तो एक लड़के के साथ गैंगरेप भी हुआ। 28 अप्रैल 2008 को सिंगापुर में 13 वर्ष के लड़के के साथ 5 लड़कियों द्वारा गैंगरेप किया गया 12 अक्टूबर 2007 को स्वीडन में एक तेरह वर्षीय लड़के का गैंगरेप चर्चा में रहा। एसे सैकड़ो उदाहरण भी हैं कि लड़कियों ने लड़को के साथ बलात्कार किया ओर बाद में पुलिस के हवाले कर दिया। अनेक लड़कियों द्वारा लड़को को फंसाकर ब्लेक मेल भी किया जाता हैं। 

भारत में आदिकाल से नारी पूज्या रही है जहां कहा जाता है‘‘ यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता‘‘। नारी सदैव अर्द्धागिनी है अर्थात् वह पुरूष के समान रही है। आज आधुनिक लोग स्त्री को समानता के अधिकार की बात करते है वह तो पहले से ही है, नया क्या है? पुरूष कमाता है। पत्नी घर गृहस्थी संभालती है। हसते खेलते दाम्पत्य में अचानक कुछ लोग गृहस्थी में जहर घोलने का काम करते हैं। हमारी परम्पराओं और मान्यता में दखल न दिया जाय तो ही उचित है। हमारी नारियां चाहे पर्दे में रहे। बुर्के में रहे या न रहें। क्यों ले जाया जा रहा है समानता के नाम पर।

आजकल बड़े शहरों की अनेक लड़कियां कालेज पहुंचते पहुंचते बाय फ्रेण्ड बना लेती हैं। शादी के बाद भी वे उन्हें छोड़ना नहीं चाहती। ससुराल वालों और पति का विरोध बाय फ्रेण्ड से मिलने पर हो तो अगले ही दिन पुलिस आपके द्वार यह सब पात्र उदाहरण है।

पति द्वारा पत्नी का उत्पीडन, शोषण दहेज की मांग, जान से खतरा, पति के परिवार से परेशानी जैसी शिकायतों के कारण अनेक पुरूष जेलों में सड़ते हैं। पति-पत्नी के तलाक के पूरे देश में लाखों प्रकरण बन चुके हैं। मामूली बात पर पति द्वारा पत्नी को उलाहना देना पति और उसके परिवार के लिए गले की हड्डी बन जाता है मगर उस बेचारे की कौन सुने? उसका गुनाह मात्र इतना है कि वह पति और पुरूष भी।

कई पत्नियां पति का मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, दैहिक शोषण करती हैं मगर वह मन मारकर सहता रहता है। अनेक पत्नियां पति व ससुराल पक्ष को आत्मदाह या अन्य किसी प्रकार से आत्महत्या की धमकी दे कर परिवार को आफत में डाल देती हैं।

अनेक पत्निया तो जब तक पति के साथ गाली गलौज न करे या उसकी पिटाई न करे तब तक उन्हें भोजन नहीं पचता। इस पर यूएन द्वारा कराए गए एक सर्वे मंे पतियों को पत्नियों द्वारा पिटाई में विष्व में प्रथम इजिफ्ट है और दूसरे स्थान पर यूके को माना गया है जबकि भारत तीसरे स्थान पर है पतियों की पिटाई के लिए बेलन, बेल्ट, जूते, झाडू, किचन के अन्य उपकरण काम में लिए जात है।  बात-बात पर कई पत्नियां तो पीहर जाने, ओर मामला दर्ज कराने की धमकियां देती हैं। सहन करो, मन की पीड़ा मन में रखो, अन्यथा चार दीवारी से बाहर बात गई और हो गई बदनामी। अगर कभी पौरूष जग गया तो भारतीय दण्ड संहिता की अनेक धाराओं का सामना करो।

तलाक, नारी उत्पीडन ओर दहेज के अधिकतर प्रकरणों में पत्नी का स्वैच्छारिक होना चरित्रहीन होना, घर के काम न करना, ससुराल पक्ष को कानून की आड़ में ब्लेकमेल करना मुख्य होता है। एसे प्रकरणों में लड़की के माता-पिता द्वारा लड़की का सहयोग करना आग में घी का काम करता है। जिस लड़की की शादी धूम धाम से की थी गृहस्थी उजड़ जाती है, ओर वह लड़की परित्यक्ता बन कर किसी के चंगुल में फंसकर अपना भविष्य दांव पर लगा देती है। शादी के बाद एक वर्ष के अन्दर अन्दर सैकड़ों नहीं हजारों प्रकरण दहेज प्रताड़ना के नाम पर तलाक और रूपये मांगने के लम्बित हैं।

        ऐस अनेक प्रकरणों को देखने ओर एकाध प्रकरण में तो मैने स्वयं ने बीच बचाव तक भी किया। कुल मिला कर महिला उत्पीडन से अधिक पुरूष उत्पीड़ित है मगर उसकी कोई भी सुनवाई करने वाला नहीं। न पुलिस, न अदालत, न सरकार और न कोई पुरूष आयोग या अन्य अनेक एसे भी प्रकरण है कि शादी के तुरन्त बाद नवविवाहिता घर के गहने कपड़े लेकर फुर्र हो जाता है और दहेज का मामला दर्ज करवा कर पति पक्ष से मोटी रकम की भी मांग करती है। पति और ससुराल पक्ष जेल में और वह अपने बॉय फ्रेण्ड के घर पर!

अनेक शहरों के पत्नी पीड़ितों ने तो पत्नी पीड़ित संघ बना कर पत्नियों से बचने के लिए सरकार का ध्यान भी आकर्षित किया किन्तु उनकी कौन सुने? राजस्थान के जोधपुर में तो पत्नी पीड़ितों ने बाकायदा जुलूस भी निकाला था ओर त्रामिमाम् चाहिमाम मच गई।

हमारे सभ्य समाज को किसकी नजर लग गई कि पहले संयुक्त परिवारों का विखण्डन हुआ। अब परिवार टूट रहे हैं और लड़को की भी इज्जत दांव पर लग रही है। इसके बचाव का एक ही सुगम रास्ता है और वह है संयुक्त परिवार प्रणाली जिसमें मान मर्यादा अनुशासन और चरित्र की रक्षा हो सकती है। इस विषय पर समाज और न्यायपालिका और सरकार को ध्यान देना होगा। अन्यथा पुरूष उत्पीडन कभी विषफोटक हो कर सड़क पर आ सकता है।

समाज का ढांचा चरमरा रहा है। चरित्र केवल शब्द कोश तक सीमित रह गया और पाश्चात्य सम्यता का अजगर हमारी सभ्यता और संस्कृति को निगल रहा हैं। हमारे सभ्य समाज को किसकी नजर लग गई कि पहले संयुक्त परिवारांे को विखण्डन हुआ। अब परिवार टूट रहे हैं और लड़को की भी इज्जत दांव पर लग रही है इसके बचाव का एक सुगम रास्ता है और वह है संयुक्त परिवार प्रणाली जिसमें मान मर्यादा अनुषासन और चरित्र की रक्षा हो सकती है तथा वर्तमान षिक्षण पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन के साथ साथ इस विषय पर समाज और न्यायपातिलका और सरकार को ध्यान देना होगा। अन्यथा उत्पीडन कभी विषफोटक हो कर सड़क पर आ सकता है। टिव्टर पर एक युजर ने तो लिख है कि पुरूष उत्पीड़न के मामले में समाज उदासीन है और वह आवाज नहीं उठाता।  अगहर पुरूष उत्पीड़न पर सरकारी स्तर पर कोई रिपोर्ट तैयार की जाए तो निष्चित तौर पर स्त्री से भी अधिक पुरूषों का उत्पीड़न हो रहा है।

सम्प्रति-
5-ई-339, जय नारायण व्यास
नगर, बीकानेर 334001
मो.नं.- 9610299299
7976262808



       
प्रो,डा ओम आनंद